लखनऊ: ज्ञानवापी मस्जिद सर्वे मामले के बीच ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कार्यकारिणी सभा की वर्चुअल आपात बैठक बुलाई। इसमें ज्ञानवापी मस्जिद और देश की विभिन्न मस्जिदों और इमारतों को लेकर मंथन किया गया। बैठक में मौजूद मुस्लिम लीडर्स का मानना था कि एक ओर नफरत फैलाने वाली शक्तियां पूरी ताकत के साथ झूठा दुष्प्रचार कर रही हैं और मुसलमानों के पवित्र स्थानों को निशाना बना रही हैं। वहीं दूसरी ओर केंद्र सरकार और राज्य सरकारें, जिनपर संविधान और कानून को लागू करने का दायित्व है, मूक दर्शक बनी हुई हैं।
इस बैठक में राजनीतिक दलों पर भी खुलकर बात हुई। बैठक में कहा गया कि जो राजनीतिक दल स्वंय को सेक्युलर और न्यायप्रिय कहते हैं, वे भी चुप्पी साधे हुए हैं। उन्हें इस दुष्प्रचार के विरुद्ध जिस तरह मैदान में आना चाहिए, नहीं आ रहे हैं। उन्हें इस मुद्दे पर अपना पक्ष स्पष्ट करना चाहिए। हमें उम्मीद है कि वे जल्दी ही अपना पक्ष रखेंगे और देश के संविधान और धर्मर्पिक्षता की सुरक्षा के लिए उनकी ओर से स्पष्ट और ठोस आवाज़ उठाई जाएगी।
बैठक में कहा गया कि अदालतें भी अल्पसंख्यकों और पीड़ितों को निराश कर रही हैं। इनके इस रवैये के कारण अराजकता फैलाने वाली साम्प्रदायिक शक्तियों का दुस्साहस बढ़ रहा है। ज्ञानवापी का मुद्दा 30 वर्ष पूर्व अदालत में उठा था। हाई कोर्ट के स्टे आर्डर के बावजूद इसे अनदेखा किया गया। ज्ञानवापी पर बार-बार सूट फाइल करना और फिर अदालतों के माध्यम से इस तरह के आदेश जारी करना अत्यधिक निराशाजनक और चिंताजनक हैं।
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बोर्ड ने पूजा स्थलों के बारे में 1991 के कानून और बाबरी मस्जिद से जुड़े फैसले में उस कानून की पुष्टि को सामने रखकर विचार करने और प्रभावशाली ढंग से मुकदमे को पेश करने के लिए एक कानूनी कमेटी बनाई है। इसमें जस्टिस शाह मुहम्मद कादिरी, जनाब यूसुफ हातिम मछाला, जनाब एमआर शमशाद, जनाब फुजैल अहमद अय्यूबी, जनाब ताहिर एम हकीम, जनाब न्याज़ फ़ारूकी, डॉ. सैयद क़ासिम रसूल इलयास और जनाब कमाल फारूकी शामिल हैं। यह कमेटी विस्तार से मस्जिद से जुड़े सभी मुकदमों का जायजा लेगी और मुनासिब कानूनी कार्रवाई करेगी।