नई दिल्ली: कोरोना वायरस की वैक्सीन ‘कोवैक्सीन’ को लेकर सोशल मीडियो पर इन दिनों एक अफवाह तेजी से वायरल हो रही है। इन्ही अफवाहों पर रोक लगाने के लिए केंद्र सरकार ने अपना पक्ष रखा है। अफवाह है कि इस वैक्सीन में गाय के नवजात बछड़े का खून मिलाया गया है। सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे इस दावे को केंद्र सरकार ने खारिज साफ तौर पर खारिज किया है।
केंद्र सरकार ने कहा है कि इस मामले में तथ्यों को तोड़मरोड़कर और गलत ढंग से रखा गया है। स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि नवजात बछड़े के सीरम का इस्तेमाल सिर्फ वेरो सेल्स को तैयार करने और विकसित करने के लिए ही किया जाता है। बता दें कि कांग्रेस के सोशल मीडिया विभाग में राष्ट्रीय संयोजक गौरव पंधी ने एक आरटीआई के जवाब का हवाला देते हुए यह आरोप लगाया था कि कोवैक्सीन बनाने के लिए 20 दिन के बछड़े की हत्या की जाती है।
https://twitter.com/GauravPandhi/status/1405028459181613059
स्वास्थ्य मंत्रालय ने दावे को किया खारिज
स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस मामले में कहा है कि दुनिया भर में वीरो सेल्स की ग्रोथ के लिए अलग-अलग तरह के गोवंश और अन्य जानवरों के सीरम का इस्तेमाल किया जाता रहा है। यह ग्लोबल स्टैंडर्ड प्रक्रिया है, लेकिन इसका इस्तेमाल शुरुआती चरण में ही होता है। वैक्सीन के उत्पादन के आखिरी चरण में इसका कोई यूज नहीं होता है। इस तरह से इसे वैक्सीन का हिस्सा नहीं कह सकते हैं।
मंत्रालय ने कहा कि दशकों से इसे पोलियो, रेबीज और इन्फ्लुएंजा की दवाओं में इस्तेमाल किया जाता रहा है। मंत्रालय ने कहा कि वीरो सेल्स को डिवेलप किए जाने के बाद कई बार पानी और केमिकल्स से धोया जाता है। इस प्रॉसेस को बफर भी कहते हैं। इसके बाद इन वेरो सेल्स को वायरल ग्रोथ के लिए कोरोना वायरस से इन्फेक्टेड कराया जाता है।
यही नहीं वायरल ग्रोथ की प्रक्रिया में वेरो सेल्स पूरी तरह से नष्ट हो जाते हैं। इसके बाद इस नए वायरस को भी निष्क्रिय किया जाता है। इस खत्म हुए वायरस का ही इस्तेमाल फिर वैक्सीन तैयार करने के लिए किया जाता है। इस तरह से कई तरह की प्रक्रिया होती हैं और अंतिम राउंड में बछड़े के सीरम का इस्तेमाल करने की बात गलत साबित होती है। साफ है कि वैक्सीन में बछड़े का सीरम नहीं होता है।
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