कोलंबो : देश में चल रही अस्थिरता के बीच राष्ट्रपति पद के लिए मतदान हुआ। इसमें कार्यवाहक राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे को 134 वोट मिले, जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी डैलस अल्हापेरूमा को 82 वोट मिले। तीन नेता चुनावी मैदान में थे। विक्रमसिंघे को पूर्व राष्ट्रपति राजपक्षे की पार्टी, श्रीलंका पोदुजाना पेरामुना (एसएलपीपी) के एक वर्ग के समर्थन के साथ प्रतिस्पर्धा थी। समगाई जन बालवेगया (एसजेबी) या यूनाइटेड पीपुल्स पावर पार्टी के नेता और विपक्ष के नेता, साजिथ प्रेमदासा चुनावी मैदान से पीछे हट गए थे। राजपक्षे सरकार के पूर्व मीडिया मंत्री और राष्ट्रपति पद के लिए एसएलपीपी के सदस्य दुलस अलहप्परुमा का नाम प्रस्तावित किया था।

कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच राष्ट्रपति चुनाव गुप्त मतदान के जरिए हुआ। किसी भी उम्मीदवार को चुनाव जीतने के लिए देश की 225 सदस्यीय संसद में 113 से अधिक मत हासिल करना था। एसएलपीपी के अध्यक्ष जी. एल. पीरिस ने मंगलवार को कहा था कि सत्तारूढ़ श्रीलंका पोदुजाना पेरामुना (एसएलपीपी) पार्टी के अधिकतर सदस्य इससे अलग हुए गुट के नेता अल्हाप्पेरुमा को राष्ट्रपति पद के लिए और प्रमुख विपक्षी नेता सजित प्रेमदासा को प्रधानमंत्री पद के लिए चुने जाने के पक्ष में हैं।

विक्रमसिंघे (73) का मुकाबला 63 वर्षीय अल्हाप्पेरुमा और जेवीपी के नेता अनुरा कुमारा दिसानायके (53) से है। अल्हाप्पेरुमा सिंहली बौद्ध राष्ट्रवादी हैं और एसएलपीपी से अलग हुए धड़े के प्रमुख सदस्य हैं। श्रीलंका में 1978 के बाद से पहली बार राष्ट्रपति का चुनाव सांसदों द्वारा गुप्त मतदान के जरिए हो रहा है। इससे पहले 1993 में कार्यकाल के बीच में ही राष्ट्रपति का पद तब खाली हुआ था, जब तत्कालीन राष्ट्रपति रणसिंघे प्रेमदासा की हत्या कर दी गयी थी। उस वक्त डी. बी. विजेतुंगा को संसद ने सर्वसम्मति से प्रेमदासा का कार्यकाल पूरा करने का जिम्मा सौंपा था।

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मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, एसजेबी और एसएलपीपी के वर्गों के बीच अनुबंध साजिथ प्रेमदासा को प्रधानमंत्री नियुक्त करने के लिए है, अगर अलहप्परुमा राष्ट्रपति पद के लिए जीत जाते हैं। तीसरे दावेदार के रूप में मार्क्‍सवादी पार्टी की नेता अनुरा कुमारा दिसानायके का नाम दौड़ के लिए शामिल किया गया है। कभी शक्तिशाली महिंदा राजपक्षे की एसएलपीपी, जिसने 2020 के संसदीय चुनाव में 225 में से 145 सीटें जीती थीं, अब दो वर्गों में विभाजित हो गई हैं। राजपक्षे परिवार द्वारा भ्रष्टाचार के आरोपों पर पार्टी को अपार सार्वजनिक अलोकप्रियता के बाद विभाजन झेलना पड़ा है।

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