मऊ: जिला पंचायत अध्यक्ष पद की सीट मऊ जिले में महिला के लिए आरक्षित हुई है। आरक्षण की लिस्ट आने के बाद से कहीं न कहीं जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर दावेदारी करने का मन बनाने वाले पुरुषों को झटका लगा है। हालांकि इनमें से कुछ दावेदार अपने परिवार की किसी महिला को चुनाव लड़ा सकते हैं। इसको लेकर अभी से रणनीति भी बनने लगी है।

बता दें कि जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर मऊ में सबसे पहले 1995 में प्रदेश सरकार ने खैरुल बशर को मनोनीत किया था। बाद में यह पद पिछड़ा वर्ग महिला के लिए आरक्षित हो गया। सपा शासन काल में इस पद के लिए हुए चुनाव में गायत्री यादव निर्वाचित हुई थीं। बाद में साल 2000 में यह पद अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हो गया। उस समय राम भवन जिला पंचायत अध्यक्ष चुने गए थे। जनवरी 2006 में यह पद पिछड़ा वर्ग महिला के लिए आरक्षित हुआ तो अंशा यादव जिला पंचायत अध्यक्ष निर्वाचित हुईं।

साल 2010 में जिला पंचायत अध्यक्ष अनारक्षित रहा तो सुनील सिंह चौहान निर्चाचित हुए। साल 2015 में जिला पंचायत अध्यक्ष पद पिछड़ा वर्ग महिला के लिए आरक्षित किया गया तो अंशा यादव दूसरी बार निर्वाचित हुईं। हालांकि बाद में अविश्वास प्रस्ताव के माध्यम से उर्मिला जायसवाल इस पद पर पदारुढ़ हो गईं। हालांकि जिला पंचायत का कार्यकाल 18 अप्रैल तक है, लेकिन चुनाव ग्राम पंचायतों के साथ ही होना है।

गायत्री यादव के कार्यकाल के दौरान उनके वित्तीय और प्रशासनिक अधिकारों पर रोक के बाद त्रिस्तरीय समिति का गठन किया गया था। साल 2010 में जिला पंचायत अध्यक्ष पद के चुनाव में काफी विवाद की स्थिति पैदा हुई थी। चुनाव के ठीक एक दिन पहले कई जिला पंचायत सदस्यों के दृष्टिबाधित होने का प्रमाण पत्र बनवा दिया गया था। इसे लेकर जनवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने विरोध प्रदर्शन किया था। इसी गहमागहमी के दौरान अंतत आखिरकार सुनील सिंह चौहान विजेता घोषित किए थे।

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