नई दिल्ली: कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों के बीच दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार के रवैये को लेकर कड़ा रुख अख्तियार किया है। दरअसल, बुधवार की रात दिल्ली हाईकोर्ट में मैक्स अस्पताल की ओर से दायर की गई एक अर्जेंट याचिका पर सुनवाई चल रही थी। यह याचिका कोरोना संकट के दौरान ऑक्सीजन की कमी को लेकर दायर की गई थी। इस दौरान दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार से औद्योगिक उद्देश्यों के लिए ऑक्सीजन की सप्लाई को तुरंत रोकने के लिए भी कहा है।

केंद्र सरकार की ओर से स्थायी वकील मोनिका अरोड़ा तथा अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) चेतन शर्मा ने अदालत को बताया कि रेमडेसिविर के इस्तेमाल पर मेडिकल राय विभाजित है। वहीं दिल्ली सरकार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील राहुल मेहरा ने अदालत से कहा कि डॉक्टर रेमडेसिविर दवाई लिख रहे हैं, लेकिन पर्चा होने के बावजूद यह बाजार में नहीं मिल रही है। पूरे मामले पर दिल्ली हाईकोर्ट की बेंच ने कहा कि कुल मिलाकर अर्थ यह है कि रेमडेसिविर की आपूर्ति कम है। बेंच ने कहा कि उत्पादन के लिए इकाइयों की स्थापना की खातिर मंजूरी देने से तुरंत परिणाम नहीं मिलेगा क्योंकि इकाई स्थापित करने में समय लगता है।

केंद्र ने हाईकोर्ट को बताया कि फिलहाल दिल्ली में ऑक्सीजन की आपूर्ति में कोई कमी नहीं है और कुछ उद्योगों को छोड़कर ऑक्सीजन के अन्य तरह के औद्योगिक इस्तेमाल पर रोक लगा दी गई है। स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से बताया गया कि 20 अप्रैल तक की स्थिति के अनुसार, मेडिकल ऑक्सीजन की आवश्यकता में 133 प्रतिशत की असामान्य बढ़ोतरी का अनुमान है। दिल्ली द्वारा बताई गई मांग का प्रारंभिक अनुमान 300 मीट्रिक टन का था जिसका संशोधित अनुमान बढ़कर 700 मीट्रिक टन हो गया। केंद्र की ओर से दिल्ली सरकार के अस्पतालों को करीब 1,390 वेंटिलेटर मुहैया करवाए हैं।

दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र को निर्देश दिया है कि कोविड-19 के गंभीर रोगियों का इलाज कर रहे अस्पतालों को फौरन किसी भी तरीके से ऑक्सीजन मुहैया कराई जाए जो इस गैस की कमी से जूझ रहे हैं। उच्च न्यायालय ने कहा कि ‘केंद्र हालात की गंभीरता को क्यों नहीं समझ रहा? हम इस बात से स्तब्ध और निराश हैं कि अस्पतालों में ऑक्सीजन खत्म हो रही है लेकिन इस्पात संयंत्र चल रहे हैं।’ न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि ‘इस्पात और पेट्रोकेमिकल उद्योग ऑक्सीजन की बहुत खपत करते हैं और वहां से ऑक्सीजन लेने से अस्पतालों की जरूरत पूरी हो सकती है। जब टाटा अपने इस्पात संयंत्रों के लिए बनाई जा रही ऑक्सीजन को चिकित्सीय उपयोग के लिए दे सकते हैं तो दूसरे ऐसा क्यों नहीं कर सकते? यह लालच की हद है। क्या जरा सी भी मानवता बची है या नहीं।’

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