ग्वालियर : मेरा मंच की सचिव गीतांजलि गीत ने बताया कि 19 दिसम्बर को सर्वधर्म संगीत एवं कला महाविद्यालय एवं मेरा मंच सांस्कृतिक संस्था के द्वारा तीस दिवसीय आवासीय नाट्य कार्यशाला का आयोजन 20 नवम्बर से शुरू किया गया था। इस का समापन 19 दिसंबर को नाट्य प्रस्तुति के साथ होगा। अलग-अलग शहर और राज्यों से आए हुए बच्चों द्वारा यह नाट्य प्रस्तुति तैयार की गई है। नाटक का नाम है ‘नसीबांवाली’ जो राजिन्दर सिंह बेदी की कहानी पर आधारित है। नाटक को निर्देशित किया है मुंबई से आए हुए प्रख्यात एक्टर डायरेक्टर राइटर विभांशु वैभव जी ने और सहायक निर्देशक के तौर पर गीतांजलि गीत हैं।
यह नाट्य प्रस्तुति बच्चों के द्वारा तैयार किया गया एक प्रयोग है। अनेक उतार-चढ़ाव के साथ अनेक प्रक्रियाओं के साथ कलाकारों को कला के प्रति गंभीरता एवं कला समर्पण सिखाने की पूरी पूरी कोशिश की गई है। एक व्यक्ति से कलाकार बनने की प्रक्रिया है यह 30 दिवसीय आवासीय नाट्य कार्यशाला जिसमें बच्चों ने विभिन्न गतिविधियों के साथ विभिन्न नाट्य प्रक्रियाओं के साथ अपने आपको प्रशिक्षित किया है और अपने व्यक्तित्व को निखारा कर एक कलाकार के तौर पर मंच पर अपने आप को प्रस्तुत करने के लिए तैयार हैं ये कलाकार।
19 दिसंबर को होगा मंचन
19 दिसंबर को शाम 6:30 बजे आईआईटीटीएम सभागार भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबंधन संस्थान गोविंदपुरी में इस नाटक का मंचन होगा। नाटक की अवधि एक घंटा 45 मिनट है। लेखक राजिंदर सिंह बेदी बहुत ही मार्मिक और ग्रामीण अंचल के तत्वों को अपनी कहानी में उभारते हैं। उनकी कहानी में सामाजिक रिश्ते. प्रेम, सौहार्द और जीवन के उन मूल्यों से परिचय कराया जाता है जो अनछुए रहते हैं। राजिंदर सिंह बेदी न तो एक बंधे-बंधाए ढाँचे में लिखने के कायल थे और न ही उन्होंने अपना लेखन किसी विचारधारा में कैद होकर लिखा।
कृश्न चंदर और ख्वाजा अहमद अब्बास के बेश्तर लेखन में जहाँ वैचारिक आग्रह साफ़ दिखाई देता है, तो वहीं बेदी किसी भी तरह के मंसूबाबंद लेखन के सख़्त ख़िलाफ़ थे। बेदी का इस बारे में साफ़ कहना था, बेदी के कथा साहित्य में जन जीवन के संघर्ष, उनकी आशा-निराशा, मोह भंग और अंदर-बाहर की विसंगतियों पर सशक्त रचनाएँ मिलती हैं। सही अल्फाजों का चुनाव और थोड़े में बहुत कुछ कह जाना बेदी की खासियत थी। उनकी कोई भी कहानी उठाकर देख लीजिए, उसमें अक्ल और जज्बात दोनों का बेहतर तालमेल दिखलाई देता है।
भावना प्रधान है कथानक की विशेषता
बेदी की कहानियों के कथानक घटना-प्रधान की बजाय ज़्यादातर भावना-प्रधान हैं, पर इन कहानियों में एक कथ्य ज़रूर है, जिसका निर्वाह वे बड़े ही ईमानदारी से करते थे। एक परिवार जहाँ आर्थिक विपन्नता है, पत्नी को सम्मान नहीं है। जो एक दिन किसी और के गुनाह के चलते मारा जाता है। पति की मृत्यु के बाद विधवा बहू का घर में कोई दर्जा नहीं रह जाता। सास गालियां देती उसे घर से निकाल देना चाहती है। लेकिन कस्बे की पंचायत अपनी आनबान के चलते उस विधवा का विवाह उसके देवर से करने के लिए मजबूर कर देती है। उस देवर का अपना प्रेम बलि चढ़ जाता है। कहानी अपने चरमोत्कर्ष पर जबर्दस्त मोड़ लेती है।
राजिंदर सिंह बेदी के उपन्यास पर आधारित ये नाटक, जो स्त्री जीवन की विषमताओं की एक पड़ताल है। ये नाटक स्त्री के जीवन की कठिनाईयों और उनके निजी संकट का जीवंत दस्तावेज है। रानो विपरीत परिस्थितियों में भी अपनों के भले के लिए अनचाहे फैसले लेने को तैयार होती है। ये नाटक स्त्री के मानसिक द्वंद, भावना और कर्तव्य के बीच हो रहे टकराव को बड़ी रोचकता और संवेनशीलता के साथ उजागर करता है। नाटक को रानो की बेटी के दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया गया है, जिसमे एक बेटी अपनी भावनाओं से जूझती अपनी मां को परिभाषित करती है।
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बरसों पुराने समय में लिखा गया उपन्यास आज भी समसामयिक है। आज वर्तमान में भी स्त्री की दशा और समस्या ज्यों की त्यों है। उपन्यास में छिपे अनेक परतों को नाटक में उधेड़ने का एक रचनात्मक प्रयास किया गया है। हमारी मान्यता, हमारी परंपरा में ऐसा क्यों है कि औरत कहीं भी चली जाए, बिस्तर, रसोई, घर ज़रूर बदलेगा,लेकिन मर्द नहीं। औरत से जुड़े तमाम सवालों से ये नाटक रूबरू कराता है।
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