लखनऊ: यूपी गैंगस्टर एक्ट के खिलाफ दायर याचिका को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा आदेश दिया है। मंगलवार को यूपी गैंगस्टर एक्ट के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए ने कहा कि अपराध एक व्यक्ति के द्वारा किया गया हो या गिरोह द्वारा, या फिर पहली बार भी किसी अपराध में संलिप्त पाए जाने पर उत्तर प्रदेश गैंगस्टर्स और असामाजिक गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है। कोर्ट ने यूपी सरकार को बड़ी राहत देते हुए कहा कि भले ही केवल एक अपराध, प्राथमिकी, आरोप पत्र दायर किया गया हो।
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष आरोपी-अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि केवल एक प्राथमिकी/आरोप पत्र के आधार पर और वह भी एक हत्या के संबंध में, अपीलकर्ता को ‘गैंगस्टर’ और/या ‘गिरोह’ का सदस्य नहीं कहा जा सकता है। दूसरी तरफ इस याचिका का विरोध करते हुए, राज्य सरकार की तरफ से दलील दी गई कि एक भी प्राथमिकी/आरोप पत्र के मामले में गैंगस्टर अधिनियम की धारा 2 (बी) में उल्लिखित असामाजिक गतिविधियों के संबंध में, गैंगस्टर अधिनियम के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है।
दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद जस्टिस एमआर शाह और बीवी नागरत्ना की खंडपीठ ने महिला आरोपी द्वारा दायर की गई याचिका को खारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम और गुजरात आतंकवाद नियंत्रण और संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम की तरह यूपी गैंगस्टर एक्ट के तहत ऐसा कोई विशेष प्रावधान नहीं है जिसमें कहा गया हो कि गैंगस्टर एक्ट के तहत मुकदमा चलाने के लिए आरोपी के खिलाफ एक से अधिक अपराध या FIR/आरोप पत्र हों।
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा CRPC की धारा 482 के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए गैंगस्टर अधिनियम, 1986 की धारा 2/3 के तहत सुनाए गए फैसले को सही ठहराया। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि मामले में मुख्य आरोपी पीसी शर्मा, एक गिरोह का नेता और मास्टरमाइंड था, और उसने अन्य सह-आरोपियों के साथ आपराधिक साजिश रची, जिसमें याचिकाकर्ता भी शामिल था।
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