बहराइच : जिले में नेपाल सीमा व आसपास इलाके में करीब 491 मदरसे बिना मान्यता के चल रहे हैं। अल्पसंख्यक कल्याण विभाग की जांच में यह बातें सामने आई है। इन मदरसों में करीब 25 हजार बच्चे पढ़ते हैं, जिनका भविष्य दांव पर है। विभाग ने भी सिर्फ इसकी सूचना सरकार को भेजने के बाद कोई कार्रवाई नहीं की। बताया जा रहा है कि ये मदरसे चंदा व जकात के पैसे से चल रहे थे।
जिले में 301 मदरसे ऐसे भी हैं जिनकी मान्यता है। नेपाल सीमा क्षेत्र में करीब 150 से भी ज्यादा गैर मान्यता प्राप्त मदरसों के संचालन की बात सामने आई है। सबसे ज्यादा बिना मान्यता के मदरसे नेपाल के सीमावर्ती क्षेत्र में संचालित हो रहे हैं। रुपईडीहा कस्बे के पास से भारत-नेपाल सीमा शुरू होती है। यहां पर नो मेंस लैंड के आस-पास वाले इलाकों में रहने वाले विशेष समुदाय के बच्चों का प्राइमरी व जूनियर विद्यालयों में नामांकन तो देखा जाता है लेकिन ये सिर्फ सरकारी योजनाओं का फायदा पाने तक ही सीमित है। सीमा क्षेत्र के निबिया, लहरपुरवा, रंजीतबोझा, मिहींपुरवा, पुरवा पचपकड़ी करीम गांव रुपईडीहा, निधि नगर पोखरा, लखैया, सुजौली, अंटहवा, नई बाजार बाबागंज आदि इलाके बिना मान्यता से संचालित मदरसों के मकड़जाल में फंसे हैं।
जिले में जो मदरसे बिना मान्यता के चल रहे हैं, उनको विदेशों से भी धन मुहैया कराया जाता है। नेपाल के रास्ते मदरसों में चीन व पाकिस्तान के लोगों का भी पैसा पहुंचता है। इसे चंदा का रूप दे दिया जाता है। अल्पसंख्यक कल्याण विभाग की माने तो जो 491 मदरसा बिना मान्यता के संचालित हैं, उनमें करीब 25 हजार बच्चे पढ़ते हैं। लेकिन इन बच्चों का भविष्य अंधकारमय है। इनको सरकार द्वारा दी जाने वाली भी कोई सहायता नहीं मिलती है।
यू डायस प्लस पोर्टल पर 17 मदरसों ने छात्र पंजीकरण की जानकारी नहीं दी थी। इसके चलते इनमें 11 मदरसा संचालकों ने अपनी मान्यता सरेंडर कर दी। इसके बाद विभाग ने मान्यता रद्द करने की कार्रवाई की है। जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी संजय कुमार मिश्रा का कहना है कि जिले में मदरसों के सर्वे का काम पूरा कर लिया गया है। इसमें गैर मान्यता प्राप्त मदरसों की संख्या 491 निकली है, जबकि 301 मदरसों की मान्यता है। पूरी रिपोर्ट शासन को भेज दी गई है।
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